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उधर लखनऊ में अखिलेश सूबे के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे, इधर एक नेता जी निराश भाव से मुंह लटकाए थे। हाल ही में चुनाव हारने का उनका गम तो समझ में आ रहा था, किन्तु उनका चेहरा कुछ ज्यादा ही लटका था।
मन नहीं माना और पूछ ही डाला…. क्या हुआ? चेहरा हार से कुछ ज्यादा दुखी है। नेता जी ने मौन तोड़ा और बोले… सच दोस्त हो तो आप जैसा। आपने सही समझा। हार-जीत तो माया है, पर इस बार जो हुआ, गलत हुआ। वैसे मेरी इस हालत में गल्ती आपकी भी है। मैं चौका, मेरी गल्ती? बोले… आप मतलब मीडिया की गल्ती। पूरा चुनाव बीता, मैं जीत रहा था। मतदान वाले दिन लगा कि मामला कुछ ग़ड़बड़ हो सकता है तो आप लोगों ने कन्फ्यूज कर दिया। सब कहने लगे हंग एसेंबली.. हंग एसेंबली। मैंने भी उम्मीदें जगा लीं। सोचा, इस चुनाव में जो हुआ सो हुआ, जल्दी ही चुनाव होगा, जीत लेंगे। मैं अकेला अपने आपको ओवरएस्टीमेट कर रहा था, समझ में आता है, किन्तु आप सब सपा को अंडरएस्टीमेट कर रहे थे, यह समझ में नहीं आता। अब आप ही बताइये, इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन खुली सब पलट गया। अब जब बहुमत मिल ही गया है, तो मेरे लिए तो इंतजार पांच साल का हो गया है। वे बड़बड़ाते हुए बढ़े… ये बहुमत क्यों मिल गया… ये बहुमत क्यों मिल गया?
खैर, मैं भी सोचने पर विवश हूं, बहुमत से जनता भले संतोष में हो… तमाम नेता निराश हैं… जल्दी चुनाव जो नहीं होगा।
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