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कुछ दिन पहले एक कवि सम्मेलन सुना। उसमें पढ़ी गयीं दो पंक्तियों से ही बात शुरू कर रहा हूं…
इश्कन इश्कन हवा चली… नहीं मिली तो नहीं मिली
सवाल उठ सकता है कि यही दो पंक्तियां क्यों…. कवि सम्मेलन में तो और भी ढेरों पंक्तियाँ पढ़ी गयी होंगी। तो आपको बता दूं कि दरअसल इन्हीं दो पंक्तियों पर सर्वाधिक तालियां बजी थीं और कवि सम्मेलनी भाषा में कहें तो इन पंक्तियों ने ही पूरा कवि सम्मेलन लूट लिया था। कुछ अजीब सा भी लगा, असफलता भी तालियां दिलवा सकती है, इसका एहसास पहली बार हुआ। कोई भी अपनी असफलता को चर्चा में नहीं लाना चाहता किन्तु इस कविता में इश्किया हवाओं के बावजूद प्रेयसी का न मिल पाना और अंत तक न मिल पाना ही इसकी सफलता की कहानी बन गया। जिंदगी भी तमाम बार अच्छे-भले, सही-गलत परिप्रेक्ष्य में असफलताओं के माध्यम से सफलता के रास्ते दिखाती है। कहा जा सकता है कि सफलताओं की कहानी असफलता से शुरू होती है और तमाम बार तो असफलताएं हमें सफलता की दिशा दिखाती हैं। हाल ही में देश ने भी असफलताओं के बाद सफलताओं भरे ऐसे तमाम दौर देखे हैं। हम खेल में वर्षों हारते रहे, लेकिन राष्ट्रमंडल में खूब जीते। अमेरिका के सामने हमारा रूप हमेशा कुछ अलग होता था, किन्तु इस बार बराक ओबामा आये तो हम कुछ जीतते दिखे। न्यूजीलैंड सीरीज में जब टीम अटकी तो हरभजन ने बार-बार सेंचुरी लगाकर हमें हारने से बचाया। यही नहीं, जब हम भ्रष्टाचार के सामने असफल दिखे तो चह्वाण, कलमाणी, सेन और फिर जिद्दी राजा की छुट्टी जैसे फैसलों ने भ्रष्टाचारियों की ताकत के सामने देश को सफल होते दिखाया। ऐसे में विशद परिप्रेक्ष्य में असफलताओं के बाद सफलताएं मिलने की यही कहानी चलती रहे तो इश्किया हवाओं के बाद नहीं मिलने की पीड़ा पर भी तालियां तो बजती ही रहेंगी।
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