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घर-घर का रावण

जिंदगी
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‘भइया, हम यो नाईं चाहत हन कि घर-घर रावण होय, लेकिन यो जरूर चाहत हन कि घर-घर का रावण जलै।
कानपुर के सेवायोजन कार्यालय व उद्योग निदेशालय के सामने जीटी रोड पर रावण के पुतले बनाते रमेश का ये वाक्य कहीं भीतर तक भेद गया। बीते कई दिनों से ये पुतले ही उसका सेवायोजन हैं और यही उसका उद्योग। यूं ही गाड़ी रोक कर उससे बात होने लगी। बोला, आओ भइया कौन सा रावण चहिये। यूं ही रेट पूछा, तो पता चला छह सौ से छह हजार तक के रावण उपलब्ध हैं। अब रावणों पर चर्चा शुरू हुई तो अमित ने मानो दशहरे का समूचा संदेश ही दे दिया। हाँ, यह रावण उसका ‘उद्योग जरूर है, किन्तु इसी ‘सेवायोजन के बूते उसका परिवार चल रहा है। इस सेवायोजन के बावजूद उसकी आत्मा इस देश के तमाम बड़ों से ज्यादा सोच रही है। इसीलिए तो उसने अनायास ही सही, घर-घर के रावण जलने की बात कही। उससे बात करने के बाद अखबार के लिए तो खबर बन गयी, लेकिन मैं सोचने पर विवश हो गया। विजय दशमी आने वाली है। गली-गली रावण के पुतले जलेंगे लेकिन क्या ये पुतले वास्तव में रावणत्व का नाश कर सकेंगे। सैकड़ों वर्षों से ये पुतले जल ही तो रहे हैं, पर कहाँ जला मन का रावण। हम तो इतने ‘प्रैक्टिकल या ‘पॉलीटिकल हो गये हैं कि इन पुतलों को जलाने के लिए तीर छुड़वाने का काम नेताओं से करवाने लगे है। जितने बड़े नेता से रावण का पुतला जलवा लिया, उतनी बड़ी रामलीला हो गयी। यह काम भी मूल रूप से अगले वर्ष का ‘इनवेस्टमेंट ही होता है। जब रामलीला बड़ी हो जाएगी, रावण के पुतले पर तीर मारने के लिए कोई बड़ी हस्ती मैदान पर आएगी, तो अगले साल चंदे के लिए ‘मार्केटिंग अच्छी हो सकेगी।
जो भी हो, एक वाक्य में मिला रमेश का संदेश भीतर तक झकझोर गया था। पुरानी यादें भी ताजा हो गयीं, जब शाम से ही रामलीला देखने जाने की तैयारी होने लगती थी। घर से मिलने वाला मेले का खर्च याद आया, जिससे मूंगफली जरूर खायी जाती थी। मूंगफली खाते हुए मेला घूमा, कुछ मस्ती हुई और फिर रावण फूंक कर घर आ गये। अब तो मेला देखने जाने में भी डर लगने लगा है। कहीं भीड़ में खो जाने का डर है, कहीं पुलिस इतनी जांच-पड़ताल में डरा देती है कि बच्चों को तो दूर ही रखने का मन करता है। फिर मन में सवाल उठा कि बच्चे मेलों के रावण से दूर हुए, तभी तो रमेश को सेवायोजन मिला। घर-घर रावण जलने लगे और सड़क-सड़क रावण बनने लगे। इसके बाद तो सबके रावण अलग-अलग हो गये है। उत्कर्ष का रावण चमकीला, तो वैभव का रावण ऊंचा। श्वेता का रावण दस सिरों वाला, तो मनीषा ने एक सिर वाले रावण को ही फूंकने का मन बनाया। ये सब फुंकेंगे, पर क्या बाबा-दादी और नाना-नानी बच्चों को ये रावण फूंकने का मर्म बताएंगे?

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