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बस दो दिन पहले की ही तो बात है। एशिया के सबसे बड़े कानपुर चिड़ियाघर में तेज संगीत के बीच तमाम निगाहें कुर्सियों पर लगी थीं। अचानक संगीत थमा और एक कुर्सी कम हो गयी। बीच-बीच में संगीत बजता रहा और कुर्सियां कम होती रहीं। आखिरी बार संगीत बजा और प्रीती जीत गयी। चिडि़याघर में म्यूजिकल चेयर का यह जादू चला, लेकिन प्रीती की जीत के शोर में गौरी का प्यार दब गया। किसी को चिंता नहीं थी कि हमसफर नागेश की मौत के बाद शेरनी गौरी बाड़े में अकेली है और शायद उसकी सिसकियों का जवाब भी किसी के पास नहीं है। साढ़े दस साल के नागेश की मौत चिडि़याघर के लिए भले ही नयी नहीं है, लेकिन यह गौरी को तो स्तब्ध कर गयी है। दोनों एक ही बाड़े में रहते थे और दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र थे। चिडि़याघर में इस समय वन्य प्राणि सप्ताह चल रहा है। सुबह से ही बच्चे वहां पहुंचने लगे थे। गीत-संगीत के बीच इन बच्चों के मन में प्राणि उद्यान का शेर देखने की इच्छा थी। सब जूनियर वर्ग प्रश्नोत्तरी में प्रथम स्थान पाने वाली सोनम शर्मा व तनाज खान बड़ी उम्मीदों से शेर के बाड़े में गयीं किन्तु वहां उन्हें नागेश नहीं मिला। वह मिलता भी तो कैसे, बीती रात उसकी जिंदगी की सांसें जो थम चुकी थीं। वहाँ तक पहुँचे कल्पित यादव हों या तुषार, सभी शेर के बाड़े में सन्नाटा देखकर निराश लौट आये। जब उन्हें शेर की मौत के बारे में पता चला तो उनका दुख और गहरा गया। इस बाड़े में बीते कई वर्षो से नागेश की संगिनी रही गौरी की सुबह भी अवसाद से भरी थी। सुबह सूरज की किरणों के साथ बाड़े में विचरण को निकली गौरी को वहाँ चहल-पहल तो कुछ अधिक लगी लेकिन शायद उसे अंदाजा नहीं था कि नागेश हमेशा के लिए चला गया। जब नागेश को उठाकर ले जाया जाने लगा तो गौरी भी पिंजड़े में दुबक गयी। उसके बाद पूरे दिन उसे बाहर नहीं देखा गया। कई वर्षो से नागेश व गौरी की देखभाल कर रहे कीपर उदयभान सिंह के लिए भी शनिवार का दिन दुखों का सैलाब लाया था। उदयभान व्यक्तिगत कारणों से शनिवार को छुट्टी पर थे किन्तु नागेश की मौत की खबर ने उन्हें आहत कर दिया। प्राणि उद्यान के अन्य कर्मचारी भी दुखी हैं। सबको याद आ रही है नागेश की दहाड़ जो काफी दूर तक सुनायी देती थी। कुछ के मन में शनिवार सुबह आक्रोश भी था। उनका कहना था कि वन्य प्राणि सप्ताह पूर्व नियोजित था, तो बौद्धिक प्रतियोगिताओं तक सीमित कर देना चाहिए था। कम से कम म्यूजिकल चेयर जैसी प्रतियोगिताएं तो नहीं होनी चाहिए थीं। संगीत के शोर में बेजुबान गौरी की सिसकियों की परवाह किसी ने नहीं की और वहां दोपहर बाद तक हंसी-ठिठोली भी होती रही। इस घटना को दो दिन बीत चुके हैं किन्तु नागेश की मौत की जिम्मेदारी तय करने के लिए एक भी आवाज नहीं उठी है। बस अखबार अपना काम कर रहे हैं। एक शेर इस दुनिया से कम हो गया, लेकिन उसके लिए आवाज कोई क्यों उठाए। वह तो असली शेर था। बंदूकों के साये में रहने वाला कोई नकली शेर इस तरह गया होता तो लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया होता। हमें आदत सी पड़ गयी है नकल बर्दाश्त करने की। हमने नकलीपन ही अच्छा लगने लगा है। इसीलिए असली शेर की मौत हमारे लिए मायने नहीं रखती। गौरी अब अकेली है और दुखी भी किन्तु उसकी परवाह भी किसी को नहीं।
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