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गिला राजा से नहीं पहरेदारों से
तीन जुलाई को जब प्रधानमंत्री कानपुर आए तो शहर खासा प्रसन्न था। उम्मीद थी कि वे शहर को कुछ खास सौगात देकर जाएंगे। वे आए और चले गए। आईआईटी में वैज्ञानिकों और मर्चेट चेंबर के कार्यक्रम में उद्यमियों के बीच उनके भाषण भी हुए किन्तु शहर को कुछ नहीं मिला। हाँ, उनकी यात्रा शहर का अमन छीन ले गयी। वही अमन, जो अचानक घायल हुआ और अस्पताल जाते समय प्रधानमंत्री की सुरक्षा आड़े आ गये। परिजन गिड़गिड़ाते रहे किन्तु पुलिस वालों की बैरीकेडिंग ने रास्ता रोक दिया। अमन अस्पताल नहीं पहुँच सका और उसने दम तोड़ दिया। इस घटना से कानपुर आहत है। अमन की मौत के गम में गुस्सा व्यवस्था की गलती पर है। मुद्दा केंद्र और राज्य या राजनीति का नहीं, लोकतंत्र में सुरक्षा के नाम पर जिसमें लोक ही तंत्र के सामने बौना हो जाता है। आगे किसी अमन की जान जाने से किसी का चमन न उजड़े इस सवाल का जवाब अब खोजा ही जाना चाहिए। अमन की मौत का हिसाब तो देना ही …होगा….. कानपुर की जनता व्यग्र है, आखिर कब तक अमन जैसे मासूम व्यवस्था की भेंट चढ़ते रहेंगे।
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