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बीपीएल

जिंदगी
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बीपीएल

बापू, ये बीपीएल क्या होता है। ब्याह के बाद गौने में मायके आयी सीमा चहकते हुए झोपड़ी में घुसी और पिता रामदरस के सामने सवाल उछाल दिया।

…बी…..पी…..एल…. माथे पर जोर डालते रामदरस कुछ जवाब देते, उससे पहले ही छुटका बोल पड़ा, धत् जिज्जी, इत्ता भी नहीं पता। अपने ज्ञान की शेखी बघारने के अंदाज में बोला, बीपीएल मतलब टीवी। अरे अभी पिछले हफ्ते ही तो पिंकू के घर में रंगीन टीवी आया है। वह तो मन में खुश हो रहा था, जिज्जी को बीपीएल का मतलब बताकर, लेकिन सीमा ने सिर पकड़ लिया। वह बोली, अरे टीवी वाला बीपीएल नहीं, कोई कारड-वारड है बीपीएल, जिसे बनवाने से रुपये मिलते हैं।

अब तक सीमा व उसके भाई की बातों को गंभीरता से न ले रहे रामदरस के चेहरे पर भी रुपये सुनते ही चमक आ गयी। बोला, क्या??? रुपये और वह भी बीपीएल के बारे में सोचने लगा। तब तक उधर से निकली आंगनवाड़ी वाली बहनजी ने सीमा को देखा तो रुक गयीं।

अरे सीमा, तू कब आयी… कितने दिनों के लिये आयी, कैसी है तेरी ससुराल? बहन जी के सवालों का सिलसिला खत्म होता, तब तक रामदरस न टोंका, अच्छा हुआ बहन जी, आप आ गयीं। ये बीपीएल कारड क्या होता है, बताओ तो सही, सुना है, उसस कुछ रुपये भी मिलते हैं। बहन जी भी बैठ गयीं और बताया कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले, मतलब सबसे अधिक गरीबों की पहचान है बीपीएल कार्ड। इससे राशन से लेकर तमाम सुविधाएं भी विशेष रूप से मिलती हैं। कुछ देर से सोच में डूबी सीमा अब कहाँ चुप रहने वाली थी। बोली, बहन जी, वहाँ तो ममता को एक साइकिल भी मिलने वाली है अगले हफ्ते। कोई मंत्री जी उसे साइकिल के साथ पंद्रह हजार रुपए भी देंगे। अभी पिछले साल मेरे साथ ही तो उसने दसवीं की परीक्षा पास की थी।

‘अब समझी’, क्यों पूछ रही थी तू बीपीएल। अरे पगली, कुछ दिन पहले ही सरकार ने ग्यारहवीं में पढ़ने वाली लड़कियों के लिये ये योजना बनायी है। गरीबी रेखा के नीचे यानी बीपीएल कार्ड वाले परिवार की ग्यारहवीं की छात्राओं को पंद्रह हजार रुपये और साइकिल देने की तैयारी है। तू बता, तूने ग्यारहवीं में दाखिला लिया कि नहीं।

सीमा बोले, उससे पहले ही रामदरस सुन्न सा पड़ चुका था। उसके दिमाग में बिटिया का ब्याह, साइकिल व पंद्रह हजार रुपये का नुकसान घूम रहा था। मुंह से बस इतना निकला, कहाँ बहन जी, बिटिया के हाथ पीले कर दिये, यही क्या कम था, जो आगे पढ़ाते।

हाँ, इतना जरूर हुआ कि बहनजी के जाते ही रामदरस भी वहाँ रुक न सका। उसे अचानक हर मुसीबत में काम आने वाल मोहल्ले के नेताजी याद आये। भाग कर उनसे पास पहुँचा और पूरी बात बताने के साथ हाथ जोड़ लिये। बोला, कुछ भी करो, मेरी सीमा को साइकिल व रुपये दिलवाओ। कुछ देर सोचने के बाद नेताजी ने जो फार्मूला सुझाया, उससे रामदरस की आँखें चमक उठीं।

‘… सीमा, उठो, तुरंत चलो।’ नेता जी के यहाँ से लौट कर आये रामदरस ने सीमा को बुलाया और जल्दी-जल्दी उसकी फोटो खिंचवायी। अगले दिन कुछ दूर के एक स्कूल में सीमा का ग्यारहवीं में दाखिला हो चुका था और बस दो दिन बाद उसके पास बीपीएल कार्ड भी था।

अब सीमा से ज्यादा रामदरस को सोमवार की प्रतीक्षा थी, जब उसे लाजपत भवन में साइकिल व पंद्रह हजार रुपये लेने जाना था। रविवार रात भर तो मानों उन्हें नींद ही नहीं आयी।

सोमवार को घर से तैयार होकर रामदरस व सीमा लाजपत भवन पहुँचे, लेकिन यह क्या?? वहाँ तो सन्नाटा जैसा पसरा था। कुछ लड़कियाँ नयी, चमचमाती साइकिल चलाती जा रही थीं, तो मंत्री जी की लाल बत्ती वाली गाड़ी को रास्ता देने के लिये तो उसे पुलिस के धक्के तक खाने पड़े। वह भाग कर लाजपत भवन के भीतर पहुँची। तीन लोग कोने में खड़े थे, हाथों में कुछ फाइलें लिये। वह समझी, ये लोग साइकिलें दिलायेंगे। वह भाग कर उनके पास पहुँची, बिना मांगे ही कागज दिखाए और बोली साइकिल दिलवा दो। उनमें से एक ने उसे घूरती नजरों से सिर से पांव तक देखा और फिर बोला, तुम तो पाँव में बिछिया पहने हो, तुम तो शादीशुदा हो, तुम्हें साइकिल भला कैसे मिलेगी।

यह सुनकर सीमा पर जो बीती सो बीती, रामदरस को जाड़े में भी पसीना आ गया। पिता का यह हाल मानो सीमा से देखा न गया। वह बाहर आयी और एक पेड़ के नीचे धीरे से बिछिया उतारने लगी।

…उस समय रामदरस को खाये जा रही थी, उन पांच हजार रुपयों की चिंता, जो उससे ‘नेता जी’ ने स्कूल में दाखिले व बीपीएल कार्ड बनवाने को लिये थे।

… उधर कुछ दूरी पर बिछिया उतारने की सीमा की हर कोशिश मानो याद दिला रही थी सावित्री की, जो सत्यवान को बचाने के लिये यमराज से भी लड़ गयी थी। सीमा के मन में घुमड़ रहा था, पति का चेहरा। बिछिया पहनाते वक्त भाभी की ठिठोली और ससुराल से मायके के लिये चलते समय पांव में रंग लगाते वक्त ननद की वह चहक, भाभी आपकी बिछिया कितनी अच्छी है। तभी तो पांव से बिछिया उतरते-उतरते खयालों का यह समंदर उसकी आंखों से बूंद-बूंद टपकने लगा था, पंद्रह हजार रुपये और साइकिल की उम्मीद के साथ।

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