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खिचड़ी के बहाने

जिंदगी
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आज सुबह सोकर भी नहीं उठा था कि कानों में खिचड़ी की खिच-खिच सुनाई देने लगी थी। मम्मी ने एलान कर दिया था, जाड़े के कारण नहाने से डरने वाली सान्या भी आज नहायेगी। मोहल्ले वाली तिवारिन आंटी, जिन्हें हम उनकी नेतृत्व क्षमता के चलते इंदिरा गांधी भी कहते हैं, सुबह-सुबह बिठूर से नहा कर आयी थीं। बिठूर सुनकर याद आया, जरा फोटोग्राफर से पूछूं कैसा रहा स्नान। फोन किया तो पता चला रस्ते में हैं, तो सोचा चलो हो लेते हैं बिठूर। अब ससुरा आदमी होय न होय, भीड़ बिल्कुलौ न होय, आउटर पर कार रुकवा ली जायेगी। खैर प्रेस बताकर भीतर गये तो गंगा जी बड़ी सूनी-सूनी लगीं। अब श्रद्धा कम हुई गयी, यह मानने को मन नहीं किया सो मान लिया सब हरिद्वार चले गये कुंभ नहाने। कुछ फोटो-शोटो खिंचवा के लौटे तो जगह-जगह खिचड़ी बंट रही थी।
बस यहीं से शुरू हो गयी अपनी स्टोरी। इस स्टोरी के दो हिस्से हैं, एक खिचड़ी बांटने वाले, दूसरे खाने वाले। नवाबगंज में कंपनी बाग चौराहे के पास पहुँचे तो अंबे़डकर जी के चरणों में दो भगौने सजे थे। पर अपनी आंख तो उस दस साल की बच्ची पर ठहरी, जो पहले एक भगौने के पास गयी, वहां से खिचड़ी ली, कुछ दूर सड़क किनारे बैठी अम्मा के पास गयी और दुबारा आ गयी। इस बार दूसरे भगौने के पास गयी और फिर वही क्रम। लौट कर आयी तो पहले भगौने के पास जाने लगी। मन नहीं माना और पूछ बैठा… तुम यहीं बैठकर क्यों नहीं खा लेती। सवाल एक था, पर जवाब में कई सवाल सामने आ गये। वह बोली आपसे मतलब, आप खिलाओगे क्या?? आखिर क्यों पूछ रहे हो। देने वाले तो नहीं पूछ रहे? और आखिरी लाइन…. चले आते हैं कहाँ-कहाँ से। खैर मन कैसे मानता, दुबारा खिचड़ी लेकर वह चली तो मैं भी पीछे-पीछे गया। लगा लाइव मकर संक्रांति कवर हो रही है। टाट के दरवाजे के भीतर एक बुजुर्ग की थाली में उसने वह खिचड़ी डाली और फिर पलट गयी। लौटी तो मुझे देख बोली, आ गये??? अजीब लगा। दस साल की उम्र और ऐसे जवाब। (मैं उसके सवालों को जवाब ही मान रहा था) बोली, देख लिया बाबा घर में बैठे थे, उन्हें तो खिचड़ी खिलानी ही है। फिर बोली, बेर-बेर बाहर अइहैं, तौ जड़ा नाई जइहैं, इत्ता समझ मा नाई आवत है। अचानक देसज शब्द सुनकर अवाक रह गया मैं। अरे यह किसी परफेक्शनिस्ट से कम है क्या?? हाँ, अचानक याद आये वे वृद्धाश्रम जहाँ बुजुर्ग घर से दूर बच्चों और नाती-पोतों को याद करते हैं और यहाँ एक पोती अपने बाबा की चिंता में अपनी भूख भूल चुकी थी।
खैर खिचड़ी के बहाने मुझे एक मजबूत संदेश मिल चुका था…
मैं भूल गया वह स्टोरी….
कल सुबह अखबार में यह स्टोरी तो नहीं होगी,
पर इस उम्मीद के साथ घर जाऊंगा कि मेरी सान्या भी बाबा-दादी का इतना ही ख्याल रखेगी…..

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